फ़ौजी की वास्तविक कहानी | FAUJI KI REAL STORY
*."1 FOUJI KI REAL STORY"*
*घर जाता हूँ तो मेरा ही बैग मुझे चिढ़ाता है,*
*मेहमान हूँ अब ,ये पल पल मुझे बताता है ..*
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*बहन कहती है, सामान बैग में फ़ौरन डालो,*
*हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता है...*
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*बहन कहती है, सामान बैग में फ़ौरन डालो,*
*हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता है...*
*घर पंहुचने से पहले ही लौटने की टिकट, वक़्त परिंदे सा उड़ता जाता है,*
*उंगलियों पे लेकर जाता हूं गिनती के दिन,*
*फिसलते हुए जाने का दिन पास आता है.....*
*फिसलते हुए जाने का दिन पास आता है.....*
*अब कब होगा आना सबका पूछना ,*
*ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है,*
*ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है,*
*घर से दरवाजे से निकलने तक ,*
*बैग में कुछ न कुछ भरते जाता हूँ ..*
*बैग में कुछ न कुछ भरते जाता हूँ ..*
*जिस घर की सीढ़ियां भी मुझे पहचानती थी ,*
*घर के कमरे की चप्पे चप्पे में बसता था मैं ,*
*लाइट्स ,फैन के स्विच भूल हाथ डगमगाता है...*
*घर के कमरे की चप्पे चप्पे में बसता था मैं ,*
*लाइट्स ,फैन के स्विच भूल हाथ डगमगाता है...*
*पास पड़ोस जहाँ बच्चा बच्चा था वाकिफ ,बड़े बुजुर्ग बेटा कब आया पूछने चले आते हैं....*
*कब तक रहोगे पूछ अनजाने में वो*
*घाव एक और गहरा कर जाते हैं...*
*घाव एक और गहरा कर जाते हैं...*
*ट्रेन में बहन के हाथों की बनी रोटियां*
*डबडबाई आँखों में आकर डगमगाता है,*
*डबडबाई आँखों में आकर डगमगाता है,*
*लौटते वक़्त वजनी हो गया बैग,*
*सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है.....*
*सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है.....*
*तू एक मेहमान है अब ये पल पल मुझे बताता है..*
*मेरा घर मुझे वाकई बहुत याद आता है....---------*
*मेरा घर मुझे वाकई बहुत याद आता है....---------*
*Ek fouji*✍
*अब अपना भी यही हाल हैं।*
*अब अपना भी यही हाल हैं।*
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