adnow

loading...

Wednesday 18 July 2018

श्रीकृष्ण की माया . . .

सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण ने पूछा कान्हा, मैं आपकी
माया के दर्शन करना चाहता हूं… कैसी होती है?”
श्री कृष्ण ने टालना चाहा, लेकिन सुदामा की जिद पर श्री कृष्ण ने कहा, “अच्छा, कभी वक्त आएगा तो बताऊंगा”
और फिर एक दिन कहने लगे… सुदामा, आओ, गोमती में स्नान
करने चलें| दोनों गोमती के तट पर गए| वस्त्र उतारे| दोनों
नदी में उतरे… श्रीकृष्ण स्नान करके तट पर लौट आए| पीतांबर
पहनने लगे… सुदामा ने देखा, कृष्ण तो तट पर चला गया है, मैं
एक डुबकी और लगा लेता हूं… और जैसे ही सुदामा ने डुबकी
लगाई… भगवान ने उसे अपनी माया का दर्शन कर दिया|
सुदामा को लगा, गोमती में बाढ़ आ गई है, वह बहे जा रहे हैं,
सुदामा जैसे-तैसे तक घाट के किनारे रुके| घाट पर चढ़े| घूमने
लगे| घूमते-घूमते गांव के पास आए| वहां एक हथिनी ने उनके गले में फूल माला पहनाई| सुदामा हैरान हुए| लोग इकट्ठे हो गए|
लोगों ने कहा, “हमारे देश के राजा की मृत्यु हो गई है|
हमारा नियम है, राजा की मृत्यु के बाद हथिनी, जिस भी व्यक्ति के गले में माला पहना दे, वही हमारा राजा होता
है| हथिनी ने आपके गले में माला पहनाई है, इसलिए अब आप
हमारे राजा हैं|”
सुदामा हैरान हुआ| राजा बन गया| एक राजकन्या के साथ
उसका विवाह भी हो गया| दो पुत्र भी पैदा हो गए| एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार पड़ गई… आखिर मर गई…
सुदामा दुख से रोने लगा… उसकी पत्नी जो मर गई थी, जिसे वह बहुत चाहता था, सुंदर थी, सुशील थी… लोग इकट्ठे हो
गए…
उन्होंने सुदामा को कहा, आप रोएं नहीं, आप हमारे राजा हैं… लेकिन रानी जहां गई है, वहीं आप को भी जाना है, यह मायापुरी का नियम है| आपकी पत्नी को चिता में अग्नि दी जाएगी… आपको भी अपनी पत्नी की चिता में प्रवेश करना होगा… आपको भी अपनी पत्नी के साथ जाना होगा|
सुना, तो सुदामा की सांस रुक गई… हाथ-पांव फुल गए… अब
मुझे भी मरना होगा… मेरी पत्नी की मौत हुई है, मेरी तो नहीं… भला मैं क्यों मरूं… यह कैसा नियम है? सुदामा अपनी पत्नी की मृत्यु को भूल गया… उसका रोना भी बंद हो गया| अब वह स्वयं की चिंता में डूब गया… कहा भी, ‘भई, मैं तो मायापुरी का वासी नहीं हूं… मुझ पर आपकी नगरी का कानून लागू नहीं होता… मुझे क्यों जलना होगा|’ लोग नहीं माने, कहा, ‘अपनी पत्नी के साथ आपको भी चिता में जलना होगा… मरना होगा… यह यहां का नियम है|’
आखिर सुदामा ने कहा, ‘अच्छा भई, चिता में जलने से पहले मुझे
स्नान तो कर लेने दो…’ लोग माने नहीं… फिर उन्होंने हथियारबंद लोगों की ड्यूटी लगा दी… सुदामा को स्नान करने दो… देखना कहीं भाग न जाए…
रह-रह कर सुदामा रो उठता| सुदामा इतना डर गया कि उसके हाथ-पैर कांपने लगे… वह नदी में उतरा… डुबकी लगाई…
और फिर जैसे ही बाहर निकला… उसने देखा, मायानगरी कहीं भी नहीं, किनारे पर तो कृष्ण अभी अपना पीतांबर ही पहन रहे थे… और वह एक दुनिया घूम आया है| मौत के मुंह से बचकर निकला है…सुदामा नदी से बाहर आया… सुदामा रोए जा रहा था|
श्रीकृष्ण हैरान हुए… सबकुछ जानते थे… फिर भी अनजान बनते हुए पूछा, “सुदामा तुम रो क्यों रो रहे हो?”सुदामा ने कहा,
“कृष्ण मैंने जो देखा है, वह सच था या यह जो मैं देख रहा हूं|”
श्रीकृष्ण मुस्कराए, कहा, “जो देखा, भोगा वह सच नहीं था| भ्रम था… स्वप्न था… माया थी मेरी और जो तुम अब मुझे देख रहे हो… यही सच है… मैं ही सच हूं…मेरे से भिन्न, जो भी है, वह मेरी माया ही है| और जो मुझे ही सर्वत्र देखता है,महसूस करता है, उसे मेरी माया स्पर्श नहीं करती| माया स्वयं का विस्मरण है…माया अज्ञान है, माया परमात्मा से भिन्न… माया नर्तकी है… नाचती है… नचाती है… लेकिन जो श्रीकृष्ण से जुड़ा है, वह नाचता नहीं… भ्रमित नहीं होता… माया से निर्लेप रहता है, वह जान जाता है,
सुदामा भी जान गया था… जो जान गया वह श्रीकृष्ण से
अलग कैसे रह सकता है!!!!
                         जय श्री कृष्णा

Saturday 14 July 2018

*"सीख"*

एक अत्यंत मार्मिक प्रेरणादायक कहानी।
जरूर से जरूर पढ़ें।
भोर के समय सूर्यदेवता ने अपना प्रसार क्षेत्र विस्तृत करना आरंभ कर दिया था. सत्य कुमार बालकनी में आंखें मूंदे बैठे थे, तभी किचन से उनकी धर्मपत्नी सुधा चाय लेकर आई ।
*“लो, ऐसे कैसे बैठे हो, अभी तो उठे हो, फिर आंख लग गई क्या? क्या बात है, तबियत ठीक नहीं लग रही है क्या?”* सुधा ने मेज़ पर चाय की ट्रे रखते हुए पूछा. सत्य कुमार ने धीमे से आंखें खोलकर उन्हें देखा और पुन: आंखें मूंद लीं.
सुधा कप में चाय उड़ेलते हुए दबे स्वर में बोलने लगी,
*“मुझे मालूम है, दीपू का वापस जाना आपको खल रहा है. मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा है, लेकिन क्या करें. हर बार ऐसा ही होता है- बच्चे आते हैं, कुछ दिनों की रौनक होती है और वे चले जाते हैं.”*
मेरठ यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रवक्ता और लेखक सत्य कुमार की विद्वत्ता उनके चेहरे से साफ़ झलकती थी. उनकी पुस्तकों से आनेवाली रॉयल्टी रिटायरमेंट के बाद पनपनेवाले अर्थिक अभावों को दूर फेंकने में सक्षम थी. उनके दो बेटों में छोटा सुदीप अपनी सहपाठिनी के साथ प्रेम -विवाह कर मुम्बई में सेटल हो गया था. विवाह के बाद वो उनसे ज़्यादा मतलब नहीं रखता था. बड़ा बेटा दीपक कंप्यूटर इंजीनियर था. उसने अपने माता-पिता की पसंद से अरेन्ज्ड मैरिज की थी. उसकी पत्नी मधु सुंदर, सुशील और हर काम में निपुण, अपने सास-ससुर की लाडली बहू थी. दीपक और मधु कुछ वर्षों से लंदन में थे और दोनों वहीं सेटल होने की सोच रहे थे.
दीपक का लंदन रुक जाना सत्य कुमार को अच्छा नहीं लगा, मगर सुधा ने उन्हें समझा दिया था कि अपनी ममता को बच्चों की तऱक़्क़ी के आड़े नहीं लाना चाहिए और वैसे भी वो लंदन रहेगा तो भी क्या, आपके रिटायरमेंट के बाद हम ही उसके पास चले जाएंगे. दीपक और मधु उनके पास साल में एक बार 10-15 दिनों के लिए अवश्य आते और उनसे साथ लंदन चलने का अनुरोध करते. मधु जितने दिन वहां रहती, अपने सास-ससुर की ख़ूब सेवा करती.
आज सत्य कुमार को रिटायर हुए पूरे दो वर्ष हो चुके थे, मगर इन दो वर्षों में दीपक ने उन्हें लंदन आने के लिए भूले से भी नहीं कहा था. सुधा उनसे बार-बार ज़िद किया करती थी, *‘चलो हम ही लंदन चलें’,* लेकिन वो बड़े ही स्वाभिमानी व्यक्ति थे और बिना बुलावे के कहीं जाना स्वयं का अपमान समझते थे.
उनकी बंद आंखों के पीछे कल रात के उस दृश्य की बारम्बार पुनरावृत्ति हो रही थी, जो उन्होंने दुर्भाग्यवश अनजाने में देखा था… दीपक और मधु अपने कमरे में वापसी के लिए पैकिंग कर रहे थे, दोनों में कुछ बहस छिड़ी हुई थी,
*“देखो-तुम भूले से भी मम्मी-पापा को लंदन आने के लिए मत कहना, वो दोनों तो कब से तुम्हारी पहल की ताक में बैठे हैं, मुझसे उनके नखरे नहीं उठाए जाएंगे… मुझे ही पता है, मैं यहां कैसे 15-20 दिन निकालती हूं. सारा दिन नौकरानियों की तरह पिसते रहो, फिर भी इनके नखरे ढीले नहीं होते. चाहो तो हर महीने कुछ पैसे भेज दिया करो, हमें कहीं कोई कमी नहीं आएगी…”* मधु बार-बार गर्दन झटकते हुए बड़बड़ाए जा रही थी.
*“कैसी बातें कर रही हो? मुझे तुम्हारी उतनी ही चिन्ता है जितनी कि तुम्हें. तुम फ़िक्र मत करो, मैं उनसे कभी नहीं कहूंगा. मुझे पता है, पापा बिना कहे लंदन कभी नहीं आएंगे.”*
दीपक मधु के गालों को थपथपाता हुआ उसे समझा रहा था.
*“मुझे तो ख़ुद उनके साथ एडजस्ट करने में द़िक़्क़त होती है. वे अभी भी हमें बच्चा ही समझते हैं. अपने हिसाब से ही चलाना चाहते हैं. समझते ही नहीं कि उनकी लाइफ़ अलग है, हमारी लाइफ़ अलग… उनकी इसी आदत की वजह से सुदीप ने भी उनसे कन्नी काट ली…”* दीपक धाराप्रवाह बोलता चला जा रहा था. दोनों इस बात से बेख़बर थे कि दरवाज़े के पास खड़े सत्य बुत बने उनके इस वार्तालाप को सुन रहे थे.
सत्य कुमार सन्न थे… उनका मस्तिष्क कुछ सोचने-समझने के दायरे से बाहर जा चुका था, अत: वो उन दोनों के सामने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाए. उनको सी-ऑफ़ करने तक का समय उन्होंने कैसे कांटों पर चलकर गुज़ारा था, ये बस उनका दिल ही जानता था. दीपक और मधु जिनकी वो मिसाल दिया करते थे, उन्हें इतना बड़ा धोखा दे रहे थे… जाते हुए दोनों ने कितने प्यार और आदर के साथ उनके पैर छुए थे. ये प्यार… ये अपनापन… सब दिखावा… छि:… उनका मन पुन: घृणा और क्षोभ से भर उठा. वो यह भी तय नहीं कर पा रहे थे कि सुधा को इस बारे में बताएं अथवा नहीं, ये सोचकर कि क्या वो यह सब सह पाएगी… सत्य बार-बार बीती रात के घटनाक्रम को याद कर दुख के महासागर में गोते लगाने लगे.
समय अपनी ऱफ़्तार से गुज़रता जा रहा था, मगर सत्य कुमार का जीवन जैसे उसी मोड़ पर थम गया था. अपनी आन्तरिक वेदना को प्रत्यक्ष रूप से बाहर प्रकट नहीं कर पाने के कारण वो भीतर-ही-भीतर घुटते जा रहे थे. उस घटना के बाद उनके स्वभाव में भी काफ़ी नकारात्मक परिवर्तन आ गया. दुख को भीतर-ही-भीतर घोट लेने के कारण वे चिड़चिड़े होते जा रहे थे. बच्चों से मिली उपेक्षा से स्वयं को अवांछित महसूस करने लगे थे. धीरे-धीरे सुधा भी उनके दर्द को महसूस करने लगी. दोनों मन-ही-मन घुटते, मगर एक-दूसरे से कुछ नहीं कहते. लेकिन अभी भी उनके दिल के किसी कोने में उम्मीद की एक धुंधली किरण बाकी थी कि शायद कभी किसी दिन बच्चों को उनकी ज़रूरत महसूस हो और वो उन्हें जबरन अपने साथ ले जाएं, ये उम्मीद ही उनके अंत:करण की वेदना को और बढ़ा रही थी.
एक दिन सत्य कुमार किसी काम से हरिद्वार जा रहे थे. उन्हें चले हुए 3-4 घंटे हो चुके थे, तभी कार से अचानक खर्र-खर्र की आवाज़ें आने लगीं. इससे पहले कि वो कुछ समझ पाते, कार थोड़ी दूर जाकर रुक गई और दोबारा स्टार्ट नहीं हुई. सिर पर सूरज चढ़कर मुंह चिढ़ा रहा था. पसीने से लथपथ सत्य लाचार खड़े अपनी कार पर झुंझला रहे थे.
*“थोड़ा पानी पी लीजिए.”* सुधा पानी देते हुए बोली *“काश, कहीं छाया मिल जाए.”* सुधा साड़ी के पल्लू से मुंह पोंछती हुई इधर-उधर नज़रें दौड़ाने लगी.
*“मेरा तो दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा है… ये सब हमारे साथ ही क्यों होता है…? क्या भगवान हमें बिना परेशान किए हमारा कोई काम पूरा नहीं कर सकता?”* ख़ुद को असहाय पाकर सत्य कुमार ने भगवान को ही कोसना शुरू कर दिया.
*“देखो, वहां दूर एक पेड़ है, वहां दो-तीन छप्पर भी लगे हैं, वहीं चलते हैं. शायद कुछ मदद मिल जाए…”* सुधा ने दूर एक बड़े बरगद के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा. दोनों बोझिल क़दमों से उस दिशा में बढ़ने लगे.
वहां एक छप्पर तले चाय की छोटी-सी दुकान थी, जिसमें दो-तीन टूटी-फूटी बेंचें पड़ी थीं. उन पर दो ग्रामीण बैठे चाय पी रहे थे. वहीं पास में एक बुढ़िया कुछ गुनगुनाती हुई उबले आलू छील रही थी. दुकान में एक तरफ़ एक टूटे-फूटे तसले में पानी भरा था, उसके पास ही अनाज के दाने बिखरे पड़े थे. कुछ चिड़िया फुदककर तसले में भरा पानी पी रही थीं और कुछ बैठी पेटपूजा कर रही थीं. साथ लगे पेड़ से बार-बार गिलहरियां आतीं, दाना उठातीं और सर्र से वापस पेड़ पर चढ़ जातीं. पेड़ की शाखाओं के हिलने से ठंडी हवा का झोंका आता जो भरी दोपहरी में बड़ी राहत दे रहा था. शाखाओं के हिलने से, पक्षियों की चहचहाहट से, गिलहरियों की भाग-दौड़ से उपजे मिश्रित संगीत की गूंज अत्यंत कर्णप्रिय लग रही थी. सुधा आंखें मूंदे इस संगीत का आनंद लेने लगी.
*“क्या चाहिए बाबूजी, चाय पीवो?”*
बुढ़िया की आवाज़ से सुधा की तंद्रा टूटी. वो सत्य कुमार की ओर देखते हुए बोली,
*“आप चाय के साथ कुछ लोगे क्या?”*
*“नहीं.”* सत्य कुमार ने क्रोध भरा टका-सा जवाब दिया.
*"बाबूजी, आपकी सकल बतावे है कि आप भूखे भी हो और परेसान भी, खाली पेट तो रत्तीभर परेसानी भी पहाड़ जैसी दिखे है. पेट में कुछ डाल लो. सरीर भी चलेगा और दिमाग़ भी, हा-हा-हा…”* बुढ़िया इतना कह कर खुलकर हंस पड़ी.
बुढ़िया की हंसी देखकर सत्य कुमार तमतमा गए. लो पड़ गई आग में आहुति, सुधा मन में सोचकर सहम गई. वो मुंह से कुछ नहीं बोले, लेकिन बुढ़िया की तरफ़ घूरकर देखने लगे.
बुढ़िया चाय बनाते-बनाते बतियाने लगी,
*“बीबीजी, इस सुनसान जगह में कैसे थमे, क्या हुआ?”*
*"दरअसल हम यहां से गुज़र रहे थे कि हमारी गाड़ी ख़राब हो गयी. पता नहीं यहां आसपास कोई मैकेनिक भी मिलेगा या नहीं.”* सुधा ने लाचारी प्रकट करते हुए पूछा.
*“मैं किसी के हाथों मैकेनिक बुलवा लूंगी. आप परेसान ना होवो.”* बुढ़िया उन्हें चाय और भजिया पकड़ाते हुए बोली.
*“अरे ओ रामसरन, इधर आइयो…”* बुढ़िया दूर खेत में काम कर रहे व्यक्ति की ओर चिल्लाई. *“भाई, इन भले मानस की गाड़ी ख़राब हो गयी है, ज़रा टीटू मैकेनिक को तो बुला ला… गाड़ी बना देवेगा…इस विराने में कहां जावेंगे बिचारे.”* बुढ़िया के स्वर में ऐसा विनयपूर्ण निवेदन था जैसे उसका अपना काम ही फंसा हो.
*_बाबूजी चिन्ता मत करो, टीटू ऐसा बच्चा है, जो मरी कैसी भी बिगड़ी गाड़ी को चलता कर देवे है.”* इतना कह बुढ़िया चिड़ियों के पास बैठ ज्वार-बाजरे के दाने बिखेरने लगी. *“अरे मिठ्ठू, आज मिठ्ठी कहां है?”* वो एक चिड़िया से बतियाने लगी.
सत्य को उसका यह व्यवहार कुछ सोचने पर मजबूर कर रहा था. ऐसी बुढ़िया जिसकी शारीरिक और भौतिक अवस्था अत्यंत जर्जर है, उसका व्यवहार, उसकी बोलचाल इतनी सहज, इतनी उन्मुक्त है जैसे कभी कोई दुख का बादल उसके ऊपर से ना गुज़रा हो, कितनी शांति है उसके चेहरे पर.
*“माई, तुम्हारा घर कहां है? यहां तो आसपास कोई बस्ती नज़र नहीं आती, क्या कहीं दूर रहती हो?”* सत्य कुमार ने विनम्रतापूर्वक प्रश्‍न किया.
*“बाबूजी, मेरा क्या ठौर-ठिकाना, कोई गृहसती तो है ना मेरी, जो कहीं घर बनाऊं? सो यहीं इस छप्पर तले मौज़ से रहू हूं. भगवान की बड़ी किरपा है.”* सत्य कुमार का ध्यान बुढ़िया के मुंह से निकले *'मौज़’* शब्द पर अटका. भला कहीं इस शमशान जैसे वीराने में अकेले रहकर भी मौज़ की जा सकती है. वो बुढ़िया द्वारा कहे गए कथन का विश्‍लेषण करने लगे, उन्हें इस बुढ़िया का फक्कड़, मस्ताना व्यक्तित्व अत्यंत रोचक लग रहा था.
*“यहां निर्जन स्थान पर अकेले कैसे रह लेती हो माई, कोई परेशानी नहीं होती क्या?”* सत्य कुमार ने उत्सुकता से पूछा.
*“परेसानी…”* बुढ़िया क्षण भर के लिए ठहरी, *“परेसानी काहे की बाबूजी, मजे से रहूं हूं, खाऊं हूं, पियूं हूं और तान के सोऊं हूं… देखो बाबूजी, मानस जन ऐसा प्रानी है, जो जब तक जिए है परेसानी-परेसानी चिल्लाता फिरे है, भगवान उसे कितना ही दे देवे, उसका पेट नहीं भरे है. मैं पुछू हूं, आख़िर खुस रहने को चाहवे ही क्या, ज़रा इन चिड़ियों को देखो, इन बिचारियों के पास क्या है. पर ये कैसे खुस होकर गीत गावे हैं.”*
सत्य कुमार को बुढ़िया की सब बातें ऊपरी कहावतें लग रही थीं.
*“पर माई, अकेलापन तो लगता होगा ना?”* सत्य कुमार की आंखों में दर्द झलक उठा.
*“अकेलापन काहे का बाबूजी, दिन में तो आप जैसे भले मानस आवे हैं. चाय पीने वास्ते, गांववाले भी आते-जाते रहवे हैं और ये मेरी चिड़कल बिटिया तो सारा दिन यहीं डेरा डाले रखे है.”* बुढ़िया पास फुदक रही चिड़ियों पर स्नेहमयी दृष्टि डालते हुए बोली.
क्या इतना काफ़ी है अकेलेपन के एहसास पर विजय प्राप्त करने के लिए, सत्य कुमार के मन में विचारों का मंथन चल रहा था. उनके पास तो सब कुछ है- घर-बार, दोस्तों का अच्छा दायरा, उनके सुख-दुख की साथी सुधा, फिर क्यों उन्हें मात्र बच्चों की उपेक्षा से अकेलेपन का एहसास सांप की तरह डसता है?
*"अकेलापन, परेसानी, ये सब फालतू की बातें हैं बाबूजी. जिस मानस को रोने की आदत पड़ जावे है ना, वो कोई-ना-कोई बहाना ढूंढ़ ही लेवे है रोने का.”* बुढ़िया की बातें सुन सत्य कुमार अवाक् रह गए. उन्हें लगा जैसे बुढ़िया ने सीधे-सीधे उन्हीं पर पत्थर दे मारा हो.
क्या सचमुच हर व़क़्त रोना, क़िस्मत को और दूसरों को दोष देना उनकी आदत बन गई है? क्यों उनका मन इतना व्याकुल रहता है…? सत्य कुमार के मन में उद्वेगों का एक और भंवर चल पड़ा.
*“माई, तुम्हारा घर-बार कहां है, कोई तो होगा तुम्हारा सगा-संबंधी?”* सत्य कुमार ने अपनी पूछताछ का क्रम ज़ारी रखा.
बुढ़िया गर्व से गर्दन अकड़ाते हुए बोली,
*“है क्यों नहीं बाबूजी, पूरा हरा-भरा कुनबा है मेरा. भगवान सबको बरकत दे. बाबूजी, मेरे आदमी को तो मरे ज़माना बीत गया. तीन बेटे और दो बेटियां हैं मेरी. नाती-पोतोंवाली हूं, सब सहर में बसे हैं और अपनी-अपनी गृहस्ती में मौज करे हैं.”* बुढ़िया कुछ देर के लिए रुककर फिर बोली,
*“मेरा एक बच्चा फौज में था, पिछले साल कसमीर में देस के नाम सहीद हो गया. भगवान उसकी आतमा को सान्ति देवे.”*
बुढ़िया की बात सुन दोनों हतप्रभ रह गए और एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे. इतनी बड़ी बात कितनी सहजता से कह गई थी वो और उसके चाय बनाने के क्रम में तनिक भी व्यवधान नहीं पड़ा था. वो पूरी तरह से सामान्य थी. ना चेहरे पर शिकन…. ना आंखों में नमी…
क्या इसे बच्चों का मोह नहीं होता? सत्य कुमार मन-ही-मन सोचने लगे,
*“तुम अपने बेटों के पास क्यों नहीं रहती हो?”* उन्होंने एक बड़े प्रश्‍नचिह्न के साथ बुढ़िया से पूछा.
*"नहीं बाबूजी… अब कौन उस मोह-माया के जंजाल में उलझे… सब अपने-अपने ढंग से अपनी गृहस्ती चलावे हैं. अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हैं. मैं साथ रहन लगूंगी, तो अब बुढ़ापे में मुझसे तो ना बदला जावेगा, सो उन्हें ही अपने हिसाब से चलाने की कोसिस करूंगी. ख़ुद भी परेसान रहूंगी और उन्हें भी परेसान करूंगी. मैं तो यहीं अपनी चिड़कल बिटियों के साथ भली….”* बुढ़िया दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए बोली. *“अरे मेरी बिट्टू आ गई, आज तेरे बच्चे संग नहीं आए? कहीं तेरा साथ छोड़ फुर्र तो नहीं हो गये?”* बुढ़िया एक चिड़िया की ओर लपकी.
*“बाबूजी, देखो तो मेरी बिट्टू को… इसके बच्चे इससे उड़ना सीख फुर्र हो गए, तो क्या ये परेसान हो रही है? रोज़ की तरह अपना दाना-पानी लेने आयी है और चहके भी है. ये तो प्रकृति का नियम है बाबूजी, ऐसा ही होवे है. इस बारे में सोच के क्या परेसान होना.”*
बुढ़िया ने सीधे सत्य और सुधा की दुखती रग पर हाथ रख दिया. यही तो था उनके महादुख का मूल, उनके बच्चे उड़ना सीख फुर्र हो गए थे.
*“बाबूजी, संसार में हर जन अकेला आवे है और यहां से अकेला ही जावे है. भगवान हमारे जरिये से दुनिया में अपना अंस (अंश) भेजे हैं, मगर हम हैं कि उसे अपनी जायदाद समझ दाब लेने की कोसिस करे हैं. सो सारी ऊमर उसके पीछे रोते-रोते काट देवे हैं. जो जहां है, जैसे जीवे है जीने दो और ख़ुद भी मस्ती से जीवो. ज़ोर-ज़बरदस्ती का बन्धन तो बाबूजी कैसा भी हो, दुखे ही है. प्यार से कोई साथ रहे तो ठीक, नहीं तो तू अपने रस्ते मैं अपने रस्ते…”* बुढ़िया एक दार्शनिक की तरह बेफ़िक्री-से बोले चली जा रही थी और वो दोनों मूक दर्शक बने सब कुछ चुपचाप सुन रहे थे. उसकी बातें सत्य कुमार के अंतर्मन पर गहरी चोट कर रही थी.
ये अनपढ़ मरियल-सी बुढ़िया ऐसी बड़ी-बड़ी बातें कर रही है. इस ढांचा शरीर में इतना प्रबल मस्तिष्क. क्या सचमुच इस बुढ़िया को कोई मानसिक कष्ट नहीं है…? बुढ़िया के कड़वे, लेकिन सच्चे वचन सत्य कुमार के मन पर भीतर तक असर डाल रहे थे.
*“लो रामसरन आ गया.”* बुढ़िया की उत्साहपूर्ण आवाज़ से दोनों की ध्यानमग्नता टूटी.
आज सत्य कुमार को बुढ़िया के व्यक्तित्व के सामने स्वयं का व्यक्तित्व बौना प्रतीत हो रहा था. आज महाज्ञानी सत्य कुमार को एक अनपढ़, अदना-सी बुढ़िया से तत्व ज्ञान मिला था. आज बुढ़िया का व्यवहार ही उन्हें काफ़ी सीख दे गया था. सत्य कुमार महसूस कर रहे थे जैसे उनके चारों ओर लिपटे अनगिनत जाले एक-एक करके हटते जा रहे हों. अब वो अपने अंतर्मन की रोशनी में सब कुछ स्पष्ट देख पा रहे थे. जो पास नहीं हैं, उसके पीछे रोते-कलपते और जो है उसका आनंद न लेने की भूल उन्हें समझ आ गई थी.
*“बाबूजी, कार ठीक हो गई है.”* मैकेनिक की आवाज़ से सत्य कुमार विचारों के आकाश से पुन: धरती पर आए.
*“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.”* सत्य कुमार ने मुस्कुराहट के साथ मैकेनिक
का अभिवादन किया. उनके चेहरे से दुख और परेशानी के भाव गायब हो चुके थे. दोनों कार में बैठ गए. सत्य ने वहीं से बुढ़िया पर आभार भरी दृष्टि डाली और कार वापस घुमा ली.
*“अरे, यह क्या, हरिद्वार नहीं जाना क्या?”* सुधा ने घबराकर पूछा.
*“नहीं.”* सत्य कुमार ने बड़े ज़ोश के साथ उत्तर दिया. *“हम हरिद्वार नहीं जा रहे हैं.”* थोड़ा रुककर पुन: बोले, *“हम मसूरी जा रहे हैं घूमने-फिरने. काम तो चलते ही रहते हैं. कुछ समय अपने लिए भी निकाला जाए.”*
सत्य कुमार कुछ गुनगुनाते हुए ड्राइव कर रहे थे और सुधा उन्हें विस्मित् नेत्रों से घूरे जा रही थी.

Tuesday 10 July 2018

शराब पीने का तरीका...​

​弄शराब पीने का तरीका...​
​弄शौक बड़ी चीज है और शौक को बेहतर तरीके से किया जाये तो ही सबसे अच्छा है, क्योंकि अच्छे से जियेंगे तभी तो पियेंगे।​
​तो आइये जानते हैं कि, 弄 शौक कैसे फरमाएं ?​
1) ​पीने से पहले कुछ खा लेना चाहिए। भूलकर भी खाली पेट ना पियें।​
2) ​ब्रान्ड का ध्यान जरूर रखें।​
जैसे - ​100 Piper's, Chivas Regal या बजट के हिसाब से Blenders Pride, Royal Stag बस, इससे नीचे ना जाएं।​
3) ​पानी ही सबसे बढ़िया है, सोडा या कोल्ड ड्रिंक को दूर ही रखें, wine और soda लीवर को परेशान कर सकते हैं।​
​अगर आप 30ml का peg 弄बनाते हैं तो 50 या 60ml तक पानी डालें।​
​ज्यादा पानी से taste कड़वा हो जाएगा, साथ में यूरिन के साथ बॉडी से ज्यादा मात्रा में पानी बाहर निकल जायेगा जिससे डिहाइड्रेशन हो सकता है।​
4) ​पीते समय light music सुनें। जैसे - मेहंदी हसन साहब, गुलाम अली, जगजीत की ग़ज़लें या जो भी आप पसंद करते हैं। अगर शादी या पार्टी में हैं तो बात अलग है।​
5) ​弄के साथ चखने में खट्टी चीजें कभी ना लें क्योंकि wine एसिडिक nature की होती है और खट्टी चीजें बॉडी में एसिड को बढ़ा देती हैं।​
​आप 勒खीरा ले सकते हैं,हल्के मसाले में भुना चिकन ले सकते हैं, पनीर , काजू आदि। भूलकर भी दही, रायता ना लें क्योंकि ये भी एसिड को बढ़ाते हैं।​
​ज्यादा मिर्च भी ना खायें।​
5) ​आराम से पिएं, प्यार से 弄पेग बनाएं। जो भी आप discuss कर रहे हैं उसका स्तर बनाएं रखें।​
6) ​जिस दिन आप मूड बनाते हैं उस दिन के बाद minimum 5 दिन का gap जरूर रखें​
​क्योंकि पूरे 5 दिन तक हमारे body organs अल्कोहॉल को consume करे रहते हैं।​
7) ​पीने के अगले दिन आप आधा नींबू, आधा चम्मच शहद पानी में डालकरपी लें। यह शरबत आपके बॉडी के सारे टॉक्सिन बाहर निकाल देगा।​
8) ​maximum 4 पेग弄 पी सकते हैं, ज्यादा मात्रा में ना लें।​
​दोस्तों अपना ध्यान रखें क्योंकि अच्छी health रहेगी तभी लम्बा जियोगे औऱ पियोगे...पीते रहोगे।​弄
​((शौक फरमाते हैं तो यह msg आपके लिए है अगर नहीं फरमाते हैं तो फॉरवर्ड कर दें उन्हें जो शौक 弄 रखते हैं

Monday 9 July 2018

Rajasthan Police Constable Admit Card Start

Admit card-राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा 2018 के मूल प्रवेश पत्र किये जारी,इस लिंक पर जाकर करे अपना एडमिट कार्ड डाउनलोड


Jaipur


राजस्थान पुलिस भर्ती परीक्षा 2018 की ऑफलाइन परीक्षा 14 और 15 जुलाई को आयोजित होगी जिसके लिए विभाग ने अभ्यर्थियों के परीक्षा जिले की सूचना के बाद आज विभाग ने मूल एडमिट कार्ड भी जारी कर दिए है अभ्यर्थी आवदेन के समय प्रयुक्त sso id के माध्यम से अपना प्रवेश पत्र देख सकते है जिसके लिए सर्वप्रथम अभ्यर्थी नीचे दी लिंक पर जाकर अपनी sso id के माध्यम से लॉगिन करके recruitment  stack2 पर जाकर Get Admit cardपर क्लिक करे।
एडमिट कार्ड डाउनलोड करने  के लिए इस लिंक पर जाकर ऊपर दिए गए निर्देशों का पालन करे।


    https://sso.rajasthan.gov.in/signin
अभ्यर्थी विभाग की साइट पर जाकर police recruitment पर जाकर भी अपना एडमिट कार्ड डाउनलोड कर सकते है
विभाग की आधिकारिक इस साइट पर जाए।

   http://recruitment2.rajasthan.gov.in
प्रवेश पत्र से सम्बंधित दिशा निर्देश विभाग ने साइट पर जारी कर दिए है जिसके आधार पर आप सहूलियत से प्रवेश पत्र की जानकारी ले सकते है।
दिशानिर्देश इस लिंक से डाउनलोड करे।


Saturday 7 July 2018

यदि ऐसा नहीं होता तो कर्ण के एक ही बाण से अर्जुन का रथ हवा में उड़ जाता


*महाभारत के युद्ध में अर्जुन और कर्ण के बीच घमासान चल रहा था । अर्जुन का तीर लगने पे कर्ण का रथ 25-30 हाथ पीछे खिसक जाता , और कर्ण के तीर से अर्जुन का रथ सिर्फ 2-3 हाथ ।*
लेकिन श्री कृष्ण थे की कर्ण के वार की तारीफ़ किये जाते, अर्जुन की तारीफ़ में कुछ ना कहते ।
*अर्जुन बड़ा व्यथित हुआ, पूछा , हे पार्थ आप मेरी शक्तिशाली प्रहारों की बजाय उसके कमजोर प्रहारों की तारीफ़ कर रहे हैं, ऐसा क्या कौशल है उसमे ।*
*श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले, तुम्हारे रथ की रक्षा के लिए ध्वज पे हनुमान जी, पहियों पे शेषनाग और सारथि रूप में खुद नारायण हैं । उसके बावजूद उसके प्रहार से अगर ये रथ एक हाथ भी खिसकता है तो उसके पराक्रम की तारीफ़ तो बनती है ।*
  कहते हैं *युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन को पहले उतरने को कहा और बाद में स्वयं उतरे। जैसे ही श्री कृष्ण रथ से उतरे , रथ स्वतः ही भस्म हो गया । वो तो कर्ण के प्रहार से कबका भस्म हो चूका था, पर नारायण बिराजे थे इसलिए चलता रहा । ये देख अर्जुन का सारा घमंड चूर चूर हो गया ।*
     *कभी जीवन में सफलता मिले तो घमंड मत करना, कर्म तुम्हारे हैं पर आशीष ऊपर वाले का है । और किसी को परिस्थितिवष कमजोर मत आंकना, हो सकता है उसके बुरे समय में भी वो जो कर रहा हो वो आपकी क्षमता के भी बाहर हो ।*
*लोगों का आंकलन नहीं, मदद करो*
यह प्रसंग दिल को छू गया सोचा आप लोगों से सांझा कर लू

* ग्रन्थकार की मुखारविंदसे *

*वो कुँए का मैला कुचैला पानी*
*पिके भी 100 वर्ष जी लेते थे*
*हम RO का शुद्ध पानी पीकर*
*40 वर्ष में बुढे़ हो रहे है।*
*वो घाणी का मैला सा तेल खाके बुढ़ापे में भी दौड़~मेहनत कर लेते थे।*

*हम डबल~ट्रिपल फ़िल्टर तेल*
*खाकर जवानी में भी हाँफ जाते है।*

*वो डले वाला नमक खाके*
*बीमार ना पड़ते थे।*
*हम आयोडीन युक्त खाके*
*हाई~लो बीपी लिये पड़े है।*
*वो नीम-बबूल,कोयला नमक*
*से दाँत चमकाते थे और 80 वर्ष*
*तक भी चबा चबा कर खाते* थे।*
*और हम कॉलगेट सुरक्षा वाले रोज डेंटिस्ट के चक्कर लगाते है ।।*
*वो नाड़ी पकड़ कर*
*रोग बता देते थे और*
*आज जाँच कराने पर भी*
*रोग नहीं जान पाते है।*
*वो 7~8 बच्चे जन्मने वाली माँ 80 वर्ष की अवस्था में भी* *घर~खेत का काम करती थी।*
*आज 1महीने से डॉक्टर की देख~रेख में रहते है फिर भी बच्चे पेट फाड़ कर जन्मते है।।*
*पहले काले गुड़ की मिठाइयां*
*ठोक ठोक के खा जाते थे।*
*आजकल तो खाने से पहले ही*
*शुगर की बीमारी हो जाती है।*
*पहले बुजर्गो के भी*
*घुटने कन्धे नहीं दुखते थे।*
*जवान भी घुटनो और कन्धों*
*के दर्द से कहराता है ।*
*और भी बहुत सी समस्याये है फिर भी लोग इसे विज्ञान का युग कहते है, ☝☝☝समझ नहीं आता ये विज्ञान का युग है या अज्ञान का ?????*

आज पत्नी दिवस हैं

  I love my wife

    *हर पति-देव इसे ध्यान से पढ़ें ~*
    एक युवक बगीचे में  
        बहुत गुस्से में बैठा था !
      पास ही एक बुजुर्ग बैठे थे !
उन्होने उस परेशान युवक से पूछा :-
           *क्या हुआ बेटा ...*
           *क्यूं इतना परेशान हो ?*
युवक ने गुस्से में अपनी पत्नी की
गल्तियों के बारे में बताया !
बुजुर्ग ने मंद-मंद मुस्कराते हुए ...
युवक से पूछा :-
 बेटा क्या तुम बता सकते हो ~
       *तुम्हारा धोबी कौन है ?*
 युवक ने हैरानी से पूछा :-
        क्या मतलब ?
 बुजुर्ग ने कहा :-
      *तुम्हारे मैले कपड़े कौन धोता है ?*
 युवक बोला  *मेरी पत्नी*
 बुजुर्ग ने पूछा :-
      *तुम्हारा बावर्ची कौन है ?*
 युवक  *मेरी पत्नी*
 बुजुर्ग :- तुम्हारे *घर-परिवार* और
      *सामान का ध्यान कौन रखता है ?*
 युवक  *मेरी पत्नी*
 बुजुर्ग ने फिर पूछा :-
      कोई *मेहमान* आए तो ...
      *उनका ध्यान कौन रखता है ?*
 युवक  *मेरी पत्नी*
 बुजुर्ग :-  *परेशानी और गम में ...*
                     *कौन साथ देता है ?*
 युवक :-  *मेरी पत्नी*
 बुजुर्ग :-  अपने माता पिता का घर
                छोड़कर *जिंदगी भर के लिए*
                *तुम्हारे साथ कौन आता है ?*
 युवक :-  *मेरी पत्नी*
 बुजुर्ग :-  *बीमारी में* तुम्हारा ध्यान और
                     *सेवा कौन करता है ?*
 युवक :-  *मेरी पत्नी*
 बुजुर्ग बोले :- एक बात और बताओ
              *तुम्हारी पत्नी इतना काम और*
              *सबका ध्यान रखती है !*
                  *क्या कभी उसने तुमसे ...*
                  *इस बात के पैसे लिए ?*
 युवक :-  *कभी नहीं...*
इस बात पर बुजुर्ग बोले कि ~
*पत्नी की एक कमी तुम्हें नजर आ गई*
*मगर , उसकी इतनी सारी खूबियाँ*
*तुम्हें कभी नजर नहीं आईं ?*
  ☄☄☄☄☄☄☄☄
 *चूंकि पत्नी ईश्वर का दिया …*
  *एक स्पेशल उपहार है* इसलिए
    *उसकी उपयोगिता जानो…*
      *और उसकी देखभाल करो।*
〰〰❣❣〰〰
     ये मैसेज हर विवाहित पुरुष के
       मोबाइल में होना चाहिए, ताकि …
          उन्हें अपनी *_पत्नी के महत्व_* का
             *_अंदाजा हो।_*
         HAPPY  WIFE  DAY
                  

कुछ वास्तु टिप्स ~ Kuchh vaastu tips


१. घर में सुबह सुबह कुछ देर के लिए भजन अवशय लगाएं । 
२. घर में कभी भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखें, उसे पैर नहीं लगाएं, न ही उसके ऊपर से गुजरे अन्यथा घर में बरकत की कमी हो जाती है। झाड़ू हमेशा छुपा कर रखें | 
३. बिस्तर पर बैठ कर कभी खाना न खाएं, ऐसा करने से धन की हानी होती हैं। लक्ष्मी घर से निकल जाती है1 घर मे अशांति होती है1 
४. घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखेर कर या उल्टे सीधे करके नहीं रखने चाहिए इससे घर में अशांति उत्पन्न होती है। 
५. पूजा सुबह 6 से 8 बजे के बीच भूमि पर आसन बिछा कर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर करनी चाहिए । पूजा का आसन जुट अथवा कुश का हो तो उत्तम होता है | 
६. पहली रोटी गाय के लिए निकालें। इससे देवता भी खुश होते हैं और पितरों को भी शांति मिलती है | 
७.पूजा घर में सदैव जल का एक कलश भरकर रखें जो जितना संभव हो ईशान कोण के हिस्से में हो | 
८. आरती, दीप, पूजा अग्नि जैसे पवित्रता के प्रतीक साधनों को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं। 
९. मंदिर में धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड की सामग्री दक्षिण पूर्व में रखें अर्थात आग्नेय कोण में | 
१०. घर के मुख्य द्वार पर दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं | 
११. घर में कभी भी जाले न लगने दें, वरना भाग्य और कर्म पर जाले लगने लगते हैं और बाधा आती है |
१२. सप्ताह में एक बार जरुर समुद्री नमक अथवा सेंधा नमक से घर में पोछा लगाएं | इससे नकारात्मक ऊर्जा हटती है | 
१३. कोशिश करें की सुबह के प्रकाश की किरणें आपके पूजा घर में जरुर पहुचें सबसे पहले | 
१४. पूजा घर में अगर कोई प्रतिष्ठित मूर्ती है तो उसकी पूजा हर रोज निश्चित रूप से हो, ऐसी व्यवस्था करे | 

"पानी पीने का सही वक़्त"


(1) 3 गिलास सुबह उठने के बाद, .....अंदरूनी उर्जा को Activate करता है... 
(2) 1 गिलास नहाने के बाद, ......ब्लड प्रेशर का खात्मा करता है... 
(3) 2 गिलास खाने से 30 Minute पहले, ........हाजमे को दुरुस्त रखता है..
(4) आधा गिलास सोने से पहले, ......हार्ट अटैक से बचाता है.. यह बहुत अच्छा Msg है Please इसे सब ग्रुपस में Frwd कर दिया जाये,नहीं आ सकता दुबारा क्योंकि इस साल फरवरी में चार रविवार, चार सोमवार, चार मंगलवार, चार बुधवार, चार बृहस्पतिवार, चार शुक्रवार, चार शनिवार. यह प्रत्येक 823 साल में एक बार होता है। यह up धन की पोटली कहलाता है। इसलिए कम से कम पाँच लोगों को या पाँच ग्रुप में भेजें और पैसा चार दिन में आयेगा। चाॅयनिज  पर आधारित है। पढ़ने के 1 1 मिनट के अंदर भेजें |

लो व्हाट्सएप ज्योतिष भी तैयार है।

१. जिसकी डीपी स्थिर रहती है उसका स्वभाव शांत रहता है.
२. बार-बार डीपी बदलने वाले चंचल स्वभाव के होते है.珞
३. छोटे स्टेटस रखने वाले संतोषी प्रवृत्ती होते हैं.
४. हमेशा स्टेटस बदलने वाले शौकीन होते हैैं.鸞
५.सतत कुछ न कुछ शेअर करने वाले दिलदार मन के होते हैं.
६.कभी भी किसी को लाईक न करने वाले घमंडी होते हैं.
७. प्रत्येक पोस्ट पर दिल से प्रतिक्रिया देने वाले रसिक और दुसरो की भावनाओं का आदर करने वाले होते हैं.
८. इधर के मेसेज उधर फेंकने वाले राजनितीक प्रवृत्ति के होते हैं.
९. फोटो या पोस्ट देखते ही ओपन करने वाले अधीर स्वभाव के होते हैं.
१०. पुरानी पोस्ट बार बार चिपकाने वाले उद्दंड होते हैं.邏
११. दुसरे की पोस्ट को पीछे कर  स्वतः की पोस्ट आगे ढकलने में माहिर व्यक्ती  खुद के बोलबाले करने वाले होते हैं. 
१२. मेसेज पढ़कर भी प्रतिक्रिया न देने वाले संकुचित प्रवृत्ती के होते हैं.
१३. कभी भी कुछ भी शेअर न करने वाले कंजूस होते हैं.
१४. बड़े मेसेज ना पढ़ने वाले आलसी या अति व्यस्त होते हैं.
१५. अलग अलग वॉट्स अप ग्रुप बनाने वाले अति महत्वाकांक्षी होते हैं.
१६. काम तक सीमित वॉट्सअप चालू रखने वाले जीवन में यशस्वी होते हैं.螺
नोट - देखिये ....आप कहाँ फिट होते हैं 

Beautiful story

एक घर मे *पांच दिए* जल रहे थे।
एक दिन पहले एक दिए ने कहा -
इतना जलकर भी *मेरी रोशनी की* लोगो को *कोई कदर* नही है...
तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं।
वह दिया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया ।
जानते है वह दिया कौन था ?
वह दिया था *उत्साह* का प्रतीक ।
यह देख दूसरा दिया जो *शांति* का प्रतीक था, कहने लगा -
मुझे भी बुझ जाना चाहिए।
निरंतर *शांति की रोशनी* देने के बावजूद भी *लोग हिंसा कर* रहे है।
और *शांति* का दिया बुझ गया ।
*उत्साह* और *शांति* के दिये के बुझने के बाद, जो तीसरा दिया *हिम्मत* का था, वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया।
*उत्साह*, *शांति* और अब *हिम्मत* के न रहने पर चौथे दिए ने बुझना ही उचित समझा।
*चौथा* दिया *समृद्धि* का प्रतीक था।
सभी दिए बुझने के बाद केवल *पांचवां दिया* *अकेला ही जल* रहा था।
हालांकि पांचवां दिया सबसे छोटा था मगर फिर भी वह *निरंतर जल रहा* था।

तब उस घर मे एक *लड़के* ने प्रवेश किया।
उसने देखा कि उस घर मे सिर्फ *एक ही दिया* जल रहा है।
वह खुशी से झूम उठा।
चार दिए बुझने की वजह से वह दुखी नही हुआ बल्कि खुश हुआ।
यह सोचकर कि *कम से कम* एक दिया तो जल रहा है।
उसने तुरंत *पांचवां दिया उठाया* और बाकी के चार दिए *फिर से* जला दिए ।
जानते है वह *पांचवां अनोखा दिया* कौन सा था ?
वह था *उम्मीद* का दिया...
इसलिए *अपने घर में* अपने *मन में* हमेशा उम्मीद का दिया जलाए रखिये ।
चाहे *सब दिए बुझ जाए* लेकिन *उम्मीद का दिया* नही बुझना चाहिए ।
ये एक ही दिया *काफी* है बाकी *सब दियों* को जलाने के लिए ....
अचछे विचार पढने के लिए हमारा
YOUTUBE चैनल अभी SUBSCRIBE करे
इस से हमारा भी Confidence बढता है
https://youtu.be/y9z6uBq9e8g